Maa
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१.ज़िन्दगी के एक मोड़ पर वो फिर से आ सामने खड़े हुए…..
मिलते ही मुझसे बोला तुम तो भूल गई ‘जाना’ मुझे…
उनकी इस नादानी पर बस हमने कहा ‘लोग तो शायद उन्हें भी नहीं भूलते…
जो किसी अनजाने से राह पर किसी एक अजनबी से मिल जाते है’…
और आप तो मेरी जान हैं “जाना”
बिना सोचे-समझे अपने दिल को तड़पाते हुए…
मुश्कुरा कर मैंने कहा…
मुझे खुद से खुद को जुदा करने के लिए,
ना चाहते हुए भी मुझे तुम्हे भूलने को मजबूर करने के लिए..
शुक्रिया…
२.शायद” मजबूर” तो हम भी थे..
तभी तो हमसफ़र होते हुए भी…
मुझे उनसे हमनवाई ना थी..
३.खबर तो थी मुझे उनकी आशिकी की…
तभी तो जान कर भी अजनबी बन गए….
उन जालिमों के सामने…
उनकी कदर के खातिर..
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