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रक्षक बना भक्षक

Maa
Maa
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आजकल के युवा और उनके परिवार वाले शारीरिक से लेकर मानसिक शोषण का शिकार बन रहे है…ये शारीरिक और मानसिक उतार-चढाव किसी वायरस और बैक्टीरिया से नहीं बल्कि हमारे जैसे ही इस समाज में पले-बढ़े इंसान से है…
हर व्यक्ति सिर्फ खुद के स्वार्थ के बारे में सोचता है..क्या कभी किसी ने जानने की कोशिश की “कैसा लगता होगा जब आपकी माँ,बहन,ताई,भाभी और उन जैसी स्त्रियों पर चलते -फिरते लोग ताने मारते है,टोन्ट कश्ते हैं…उस वक़्त हर कोई यही सोचता हैं, ये लड़के तो इन आदतो से लाचार हैं..अपनी इज़्ज़त बचाते हुए हम लडकिया उन लड़को और उनकी बातो को नजर-अंदाज़ कर देते हैं,चाहे कितना भी इन बातो को नजरअंदाज किया जाये लेकिन इस नजरअंदाज के पीछे लड़कियों का जो शोषण होता हैं ये तो सिर्फ एक लड़की ही समझ सकती हैं..आस-पास हजारो लोग होते हैं जो ये अपशब्द बाते सुनते हैं चाहे वो लड़की हो या लड़का लेकिन कोई आवाज़ नहीं उठा सकता..क्योकि सब को अपनी जान और इज़्ज़त की फ़िक्र होती है…
ये तो बाते हुए चलते -फिरते मिल जाने वाले भक्षक लोगो की लेकिन अगर कोई अपना रक्षक बनने का ढोंग करते- करते भक्षक बन जाये तो इससे होने वाले मानसिक और शारीरिक शोषण और उससे बचने का निवारण क्या हो सकता है…
आज की कहानी भी एक ऐसे लड़की की है जो इस मानसिक और शारीरिक शोषण का शिकार बनी…
‘मीता’ एक बहुत ही सुशील और पढ़े-लिखे परिवार की लड़की थी..उसके पिता जी एक सरकारी शिक्षक थे…और माता जी एक पढ़ी – लिखी गृहणी जो अपना काम बहुत ही कुशल – पूर्वक करते हुए बचे समय में बुनाई और सिलाई का काम करके घर का कुछ खर्च निकाल लेती थी..
‘मीता’ बचपन से बहुत ही संस्कारी और हौसले से पूर्ण लड़की थी..उसे लगता था ऐसे कोई भी काम नहीं है जो वो नहीं कर सकती..
पढने- लिखने से लेकर संगीत,कलाकारी और घूमने का उसे बहुत शौक था..घर में छोटी होने के कारण माता जी और पिता जी की चहेती भी थी..
मीता जब कक्षा १० में थी तब से ही वो अपनी सनातक की पढाई अच्छे कॉलेज से करना चाहती थी..इन बातो से माँ और उसके पिता जी वाकिफ थे की ‘मीता’ के पढाई (स्टडी) के लिए उसे अपने बिहार के इस छोटे से शहर से कहीं बाहर भेजना पड़ेगा..जिससे की ये अपनी पढाई अच्छे से कर सके और उसकी नौकरी भी कहीं अच्छी जगह लग जाये..
अब वो ‘वक़्त’ हवा के भी तेज़ गति से मीता के घर पधारा.. धीरे -धीरे वो दिन भी आ गया जब मीता को अपनी माता जी और पिता जी के साथ मुंबई के लिए रवना होना था…सब बहुत ही खुश थे..मीता मन ही मन अपने सपनों का ख्याली पुलाव बनाने में लगी हुई थी..
मुंबई स्टेशन पहुँचते ही उसकी मुलाकात वहाँ उसके रहने वाले सगे-सम्बन्धियों से हुई.उनमें उसके मामा जी,,मामी जी..थे..
सब लोग घर के तरफ प्रस्थान धरे..वो दिन तो बहुत ही अच्छे से गुजर गया.आज सब घर वाले मीता को कॉलेज छोड़ने निकले..मीता तो वहाँ अच्छे से सेटल करके..उसकी पसंदीदा सामान और उसे ना रोने की हिदायत देकर लौटने लगे…मीता ने सबसे आशीर्वाद लिया..माँ ने उसे गले लगते हुए कहाँ बिटियाँ किसी भी चीज़ की जरूरत हो मामा जी हैं उनको बोल देना..परेशान मत होना…और सब चले गए..
मीता को वहाँ रहते करीब एक साल होने ही वाला था..सब कुछ सुयोग्य तरीके से चल रहा था..बीच -बीच में मामा जी भी मिलने आ जाया करते थे..परिवार वालों से अक्सर मोबाइल पर बाते भी हो जाया करती थी..और उस साल तो मीता अपनी कक्षा में अवल नंबर पर रही थी..
एक दिन फिर मीता अपने मामा जी के घर पर साप्ताहिक छुट्टियाँ बिताने चली गई थी..और मामी जी से बाते करने में..उनके बच्चों के साथ खेलने में..उनको कहानियाँ सुनाने में लगी हुई थी…तभी अचानक से उसे खबर मिली की उसकी सगी ‘मासी’ के बेटे का भी उसी के कॉलेज में नामांकन हो रहा है..
ये सुनते ही मीता खुशी से झूम उठी..उसे लगा अब वो अकेली नहीं रहेगी..नए शहर में किसी अपने के आगमन से इतनी खुशी का अहसास शायद उसने कभी ना की होगी…
तभी तो उछालते -फुदकते एक चिड़ियाँ की बच्चों की तरह अपने सारे फ्रेंड्स को बता दिया मेरा भाई आ रहा है..अब वो यहीं रह कर अपनी हायर स्टडी करेगा..
उसकी चंचलता को देखकर सब खुश थे..वो दिन आ ही गया जब उसका भाई “वीर” उसके सामने था..झट से मीता उसके गले लग गई..और रो पड़ी ..
बोली भाई अच्छा हुआ आप आ गए बहुत अकेला महसूस होता था मुझे…अच्छा क्या लाये हो मेरे लिए..और माँ ने क्या भिजवाया है मेरे लिए..मासी जी का क्या हाल है..घर सब लोग ठीक हैं…बस सवालों का बौछार खड़ा कर दिया उसने…
उसकी नादानी देखर बस भाई ने कहा-रुक- रुक सॉस तो ले ले या मुझे ले लेने दे..चल तुझे आइस-क्रीम खिलता हूँ फिर बताता हुँ..घर का हाल-चाल…
आज मीता बहुत खुश थी.घर की खबर मिलने के बाद तुरंत उसने माँ को कॉल लगाया..और सब खबर बताई की माँ वीर भाई आ गए..और मैं बहुत खुश हुँ..
दोनों भाई-बहन को एक ही कॉलेज में पढ़ते-पढ़ते करीब ६ महीने बीत गए थे..और मीता वो नादान बच्ची उसे बुरी तरह अपने भाई की लत लग गई थी..कोई भी काम हो बस “भाई मुझे भूख लगी है , भाई मुझे घूमने जाना हैं, भाई मुझे पेन चाहिए..” और उसकी ये सब मुराद बहुत ही आराम तरीको खुशीपूर्वक हो जाती थी..
कभी इन सब हरकत को उसने गौर से महसूस ना की..क्यों आखिर वीर उसकी हर बात इतने आसानी से मान जाता है,चाहे “मीता” उसे रात के १० बजे भी बोले की भाई मुझे ये सामान चाहिए तो वो आसानी से मिल जाता है,,चाहे वीर का एग्जाम क्यों न चाल रहा हो वो उसे मिलने एक बार जरूर उसके डिपार्टमेंट में आ जाता,,और जब मीता बोलती अरे भाई इसकी क्या जरूरत थी आपका एग्जाम चल रहा है..और मेरी हर चीज़ हर मुराद क्यों पूरी करते हो..तो बस उसे मुश्कुरा कर कहता तू तो मेरी छोटी बहन है ना मैं नहीं करूँगा तो कौन करेगा…अब तो मीता के मामा जी भी वीर के आ जाने के बाद तोड़े बेफिक्र हो गए थे..
धीरे-धीरे मीता को इन सब बातो से चिढ़न होने लगी..की क्यों भाई उसके इतने करीब आना चाह रहे है..एक दिन तो हद ही हो गई जब मीता की फ्रेंड और मीता ने दोनों वीर के सामने एक लड़के की बात छेड़ दी..मीता की फ्रेंड ने कहा-आजकल तो मीता के बहुत से दीवाने हो रहे है..और उनमे से एक तो मीता को भी पसंद है..बस होना क्या था…वीर” उठा और गुस्से से मीता को कहा-सुन तू अगर ऐसा करेगी ना तो जान से मार दूंगा उस लड़के को..
उस दिन मीता तो मीता उसकी फ्रेंड ने भी वही महसूस किया जो गलत था..लेकिन मीता ने इन बातों को अपनी गलत फहमी और वीर का भाई-चारा समझ कर उन बातो को भुला देना चाहा..
यहीं मीता की सबसे बड़ी गलती, उसकी पहली “हार”और वीर की सबसे पहली “जीत” बन गई ..
जब भी कोई त्यौहार पर छुट्टियाँ होती मीता पहले की तरह वीर के साथ घर जाना पसंद नहीं करती..फिर भी पारिवारिक दबाब के कारण उसे उसके साथ जाना पड़ता था..अब तो धीरे -धीरे नफ़र्त सी होने लगी थी मीता को अपने भाई और उसके ख़्याल (केयर) रखने के तरीको से…
मीता आज कहाँ जा रही है तू , तेरी छूटी है ना आज चल मैं तुझे आज घुमाने ले चलता हुँ और अगर मीता किसी फ्रेंड के साथ है तो क्यों है ,क्या कारण है, अगर फ्रेंड कोई लड़का हुआ तो उस दिन तो मीता की खैर नहीं ..उस दिन तो उसे हॉस्टल के बाहर बुला कर डाटना,फटकारना,उसकी उसके ही फ्रेंड के सामने बेइज़्ज़ती करना ये सब देख कर मीता के फ्रेंड्स भी उससे कट कर रहने लगे
इन सब बातो को झेलते-झेलते मीता वीर को कुछ बोल देती तो उसे (इमोशनली) ब्लैक मेल करता और मीता को लेकर एक पल में उसका रंग गिरगिट के तरह बदल जाता जिस कारण हमेशा की तरह मीता फिर से एक-एक बार करके भाई चारे के भ्र्म का शिकार बन जाती..
धीरे -धीरे मीता ने वीर से दूरी बनाना शुरू कर दिया ..इतनी नजदीकी रिश्तेदारी होने के कारण मीता सोचती मैं कहाँ फंस गई ,क्या करूँ ,कहाँ जाऊँ, किसको क्या बोलुँ..एक कच्ची सी उम्र के कारण मीता बुरी तरह से वीर के जाल में फस्ती जा रही थी ..वो खुद से ज्यादा अपने परिवार और भाई चारे की इज़्ज़त बचाने के लिए अपने फ्रेंड से भी ये बाते चाह कर भी नहीं बता पा रही थी …
ऐसी परिस्तिथि में मीता के क्लासेज हो रहे थे ,एग्जाम ,प्रैक्टिकल फिर मानसिक तनाव के साथ मीता बस अपनी दिवाली छुट्टियों की ज़ोरो -सोरो से इंतज़ार कर रही थी ..और इस बार तो उसके पिता जी उसे घर ले जाने के लिए आने वाले थे ..
छुट्टियाँ शुरू हो गई और मीता के पिता जी भी उसे घर ले जाने के लिए आ गए .मीता पिता जी को देखते ही खुश हो गई और कहा पिता जी मुझे यहाँ से ले चलो आप , मुझे घर पर ही रहना है ..पिता जी भी उसके तनाव को नादानी समझ कर मुश्कुरा दिए .
मीता ने शायद इस बार मन ही मन सोच लिया था इस बार माँ को तो वीर की करतूत, सारी बाते बता दुँगी .
घर पहुँचते ही मीता माँ से लिपट गई और कहा माँ ये दुनिया बहुत ही बुरी है ..आजकल अपनों पर भी भरोसा नहीं है माँ मीता की ये दशा देखकर घबरा सी गई अपनी घबराहट ना बयान करते हुए उन्होंने सबसे पहले उसे खाना खिलाया उसकी पसंद की सब्जी ,,पूरी खिलने के बाद माँ ने मीता से उसकी इस दशा और दिल का हाल पूछते ही कहा बेटा सब ठीक है ना..इतना ही कहा था उन्होंने की मीता रो पड़ी और उसने कहा-
माँ आपने बचपन से ही मुझे फूलों की तरह सजो कर रखा है, हर एक आँच आने पर आपने मेरे अड़चन भरे रास्ते को ही मोड़ दिया लेकिन अगर कोई आपका अपना ही आपकी मीता को गलत नजर से देखे ..और उसकी इज़्ज़त पर हाथ डालने की कोशिश करे तो आप क्या करोगे ..
उसकी इन बातो से माँ बिल्कुल हैरान परेशान सी हो गई की,” मीता को ऐसा क्या हो गया की उसने ऐसा कहा” ..माँ ने उसे बहुत ही प्यार से कहा बिटिया बता तुझे क्या हुआ , किसने क्या बोला, बता मुझे …
तब मीता ने शुरू से लेकर अंत तक …. वीर के बारे में सब कुछ माँ को बता दिया …
और उसकी माँ ने सबसे पहले उसे गले लगते हुए कहा , बेटा तू परेशान ना हो , तेरी कोई गलती नहीं है है इसमे, मैं हुँ ना सब ठीक हो जायेगा ..
माँ ने सब कुछ सोच समझ कर जांच -परख कर …एक निर्णय लिया की वो ये सब बात मीता की मासी ,मतलब अपनी बहन ,वीर की माँ को बताएगी …
सारी बातें मासी और माँ के बीच होते हुए सबसे छुपते- छुपाते हुए …वीर को समझाते हुए, उसे मीता से दूर रहने की हिदायत दी गई और डांटा फटकारा गया,उसपर कड़ी नजर रखी जाने लगी और मीता को भी सही-गलत पहचानने, सही राश्ते पर चलने का निर्देश दिया गया.
ये बात फैले ना इसलिए इस बात को वही हमेशा के लिए ही दफ़न कर दिया गया ..
लेकिन क्या ये फैसला सही था या नहीं …क्या इसके आगे भी कुछ फैसला होना चाहिए था..
हो सकता है इस कहानी के फैसले से हम में से कुछ लोग संतुस्ट ना हो लेकिन…
ये कहानी हमे यह निर्देशित करती है की चाहे कैसी भी परिस्थिति हो,चाहे ज़िन्दगी में कितना भी उतार- चढ़ाव आये सारी बातें अपने परिवार को सबसे पहले बताना चाहिए . खास करके माँ को …
“वो कहते है ना माँ एक ऐसी शक्ति है जो अपने बच्चोँ हो हर मुश्किल भरे दौर से निकाल सकती है .

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