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वो कहते है ना..हम उन्ही से अपनी निजी बातें कर सकते है…जिनपर अपना कोई हक़ है..और वो सीर्फ और सिर्फ हमारा हो…या उनसे जो अपना होकर भी परया हो जाता है….
सदियों से प्यार और ख़ुशी;प्यार और दुःख;प्यार और धोखा; प्यार और कुर्बानी का साथ रहा हैं..
वैसे ही ये कहानी है..एक युवक की जिसने अपने प्यार को पाने के लिए प्यार की कदर की ..
बहुत ही अनमोल है ये ज़िन्दगी….
हर पल एक नए टेड़े -मेंडे राश्ते को सामने ला खड़ा कर देती हैं….
और जब हम लड़खड़ाते हुए नये राश्ते पर चलना सिख लेते हैं..
तब वो अपनी मकशद ही बदल लेती हैं….
इन्ही पंक्तियों को पूरा करते हुए निखिल ने अपनी बचपन की दोस्त प्रिया को कहा-ओये चल चलते हैं..तोड़ा पार्क की सैर कर आते है..
प्रिया(निखिल को छेड़ते हुए )-पार्क की सैर करेगा या वहां के रोमांटिक नजारो से अपनी कहानी की पंक्तियाँ चुराएगा…
निखिल-चल कितनी झल्ली और बेशर्म है तू, ‘क्या है वहाँ के नजारो में जहाँ एक बच्चे से लेकर नौजवान और बुजुर्ग अंकल-ऑन्टी दीखते है…एक दूसरे को ये दिलाशा दिलाते हुए की चाहे कुछ भी हो जाये मैं हमेशा हर हाल में आपके साथ हुँ..’
इस पर प्रिया ने कहा अरे ओ लेखक बाबू चले अब, ‘लोगो को दिलाशा दिलाने के लिए यही तो है आगे आने वाले समय के चेतन भगत..’ और दोनों हसी मजाक करते पहुंच गए उस पार्क के पास जहाँ निखिल और प्रिया की हजारो बचपन की बाते जुडी थी…जहाँ वे एक दूसरे के साथ से खेलने से ज्यादा झगड़ा करते थे..
बचपन..जवानी सब साथ तो बीता था वहाँ…
बस एक ही बात थी जो निखिल ने प्रिया को भी नहीं बताया था जो पल उसने इस पार्क के पास प्रिया के बगैर बिताये थे…और वो थी उसकी वीरानियाँ
पार्क का बस १ से २ चककर लगाने के बाद अचानक से निखिल पार्क के एक कोने में बैठ जाता है….यह देखते हुए प्रिया बोल उठती है ओये कहा गई तेरी स्टेमिना, ‘आज मुझसे भी कम चक्कर लगाया तूने…’ इस पर निखिल द्वारा कोई उत्तर न मिलने पर प्रिया ने कहा क्या हुआ है , तुझे..सुबह से देख रही हुँ..कुछ परेशान सा है..बता दे दिल हल्का हो जायेगा….
कभी – कभी हम चाहते हुए भी किसी का साथ नहीं छोड़ पाते..शायद उस वक़्त खुद से ज्यादा हमे उस इंसान की फ़िक्र होती है..
और यहाँ तो मामला ही कितना उल्टा है..ना ही मैंने उससे पूरी तरह से वफाये निभाई ना ही प्यार का खुल कर इज़हार किया..आखिर क्या सोचती होगी वो की मैं बहुत ही बड़ा आवारा और किसी की कदर ना करने वाला लड़का हुँ…
निखिल की इन बातो पर इस बार प्रिया ने कोई भी विचार व्यक्त नहीं किया..बस वो चुप – चाप उसकी बातें सुनती रही और उस दिन निखिल भी चुप नहीं हुआ वो अपनी सारी बात प्रिया को बताता गया…
बातो को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा कैसे कहता मैं निशा को की मैंने सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए तुमसे प्यार किया…तुम ही हो जिसके कारण आज मैं इतना बड़ा लेखक हुँ..जिसकी हर कहानी तुम्हारे बिना अधूरी हैं…और उन सारी कहानियों के पात्र में नायक मैं और नायिका तुम हो निशा…
मैं उसे कैसे बताऊ प्रिया की वो साँसे लेती है तो मेरी ज़िन्दगी है; वो है तो मैं हुँ …उसकी हर बेचैनी; हर मुस्कराहट; हर उदासी से मेरा उससे वास्ता हैं..
तुझे तो पता है ना की मैं कितना सरफिरा..मनचला..और एक जगह ना रहने वाला इंसान हुँ…शायद तू उस वक़्त सही थी जिस वक़्त तूने मुझे कहा था सुधर जा..एक राश्ते पर चलना सिख ले..वरना एक दिन कोई नहीं होगा तेरे साथ…और वैसा ही हुआ..”आज ना फैमिली मेरे साथ है और ना ही मेरा प्यार..”
बस एक तू हैं..अब तो खुद से भी डर लगता है कही तुझसे और खुद से भी दूर ना हो जाऊ…सच्चाई से न जाने क्यों पीछा छुड़ा रहा हुँ..और फिर भी तो देख मेरी अकड़, ‘जो आज भी उम्मीद है मुझे की निशा आज भी मुझे उतना ही प्यार करती है..जितना पहले करती थी…”
बतशर्ते मुझे उसने आखिरी बार यही कहा था सिर्फ यही, की मुझे तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुन्नी है…और नहीं तुम्हारी कोई कहानी..
किश्मत भी कितनी अजीब सी चीज़ होती है…जब सब कुछ अच्छा होता रहता है तो अचानक से राश्ते का रुख ही बदल देती है…कभी किसी को अमीर से गरीब तो कभी गरीब से अमीर…कुछ ऐसा ही हुआ था मेरे साथ जब मैं खुद से ही ज़िन्दगी जीने का जंग लड़ रहा था और उस वक़्त निशा प्रेरणा की श्रोत बन कर मेरी ज़िन्दगी में आई…और धीरे धीरे उसके आते ही मेरी ज़िन्दगी ने करवटे बदलनी शुरू की…और जो मैं आज हुँ तो सिर्फ उसकी वजह से..
हम बहुत ही खुश थे..हमारे पाँव जमीन पर टिकते ही नहीं थे…हर वक़्त उससे बाते करना..दिन भर की आप बीती सुनाना..बस यही काम रह गया था हमारे पास;;; इसका असर दिखा जब १ ईयर स्नातक की रिजल्ट की घोसना हुई…हम पहली डिवीज़न से पास तो गए लेकिन हमे और अच्छे अंको की उम्मीद थी..
फिर हमने एक वादा किया अब हम बात नहीं करेंगे जब तक हम एक काबिल इन्सान न बन जाये..और इस पर निखिल ने निशा को कहा फिर मैं तुम्हारे घर आऊंगा तुम्हारे पिता जी हमारी शादी की बाते करने..यही से हमारी बिछड़ने की दास्तान की शुरआत हुई ..जो आज तक ख़त्म नहीं हुई…
इसी बीच मैं और निशा क्लास करते हुए एक दूसरे का हाल चल पूछ लिया करते थे..इससे ज्यादा पढाई की बातें और ऐसे ही कब हमारी पढाई पूरी हो गई हमे पता ही नहीं चला..निशा अपनी हायर स्टडी के लिए दिल्ली चली गई और मैं मुंबई आखिर मुझे जो लेखक बनना था…
एक दूसरे की अंतर आत्मा की कदर करते हुए हम एक अच्छा और आत्म निर्भर इंसान बनने की होड़ में लग गए…करीब १ से दो साल तक हमारी कोई बातें भी नहीं हुई..और इसी बीच कुछ ऐसा हुआ मेरे साथ…मैं खुद को शम्भाल नहीं पाया..मुझे कोई खबर नहीं रहती थी मैं कहा हुँ; किस हाल में हुँ; माँ के गुजरने के बाद सब बिखर गया…घर का एकलौता वारिश होने के कारण सारा ध्यान पिता जी पर और घर की देख रेख में लगा रहता और ..जितने समय में मैं उनको समझ पता ..शम्भाल पाता, पिता जी भी अपने हार्ट अटैक के कारण मुझे छोड़ कर चले गए…मैं बिलकुल अकेला हो गया था…मुझे लगने लगा इन सब की वजह मैं हुँ..मैंने फैमिली की बात मानी होती;; घर का ही बिज़नेस शम्भाल लिया होता तो ऐसा नहीं होता…और प्रिया उस वक़्त तो तू भी नहीं थी मुझे शम्भलने के लिए..टूट गया था मैं ..
शायद आज भी लगता है मैं सबसे दूर रहू मेरी चंचलता,, मेरी नासमझी शायद किसी को भी मुझसे दूर कर सकती है..इसलिए मैं तुझसे और निशा से भी दूर हो गया था…
लेकिन प्रिया जब आज अपने सुने और वीराने घर को देखता हुँ तो लगता है शायद कोई तो इसे पहले की तरह सवार दे जैसे माँ रखती थी…
इन सभी बातो को सुनते हुए प्रिया ने निखिल को गले से लगाया और कहा-
अगर हमसे कोई गलती होती है तो उसे सही करने का तरीका ढूंढना चाहिए नाकि उस गलती से मुँह फेर लेना चाहिए…
अगर हमने किसी का दिल दुखाया है..तो हमेशा उसे मना लेना चाहिए…ये रिश्ते बहुत ही नाजुक होते है…इसमे अगर कही से भी गलतफहमी की बू आ जाती है तो वो रिश्ते की डोर को धीरे-धीरे जड़ से तोड़ने लगती है…
हम चाहे उस रिश्ते को आगे बढ़ा पाये या नहीं लेकिन हमारी और हमारे प्यार करने वालो की कदर करते हुए..उनके दिल से ग़लतफ़हमी मिटाना बहुत ही ज़रूरी होता है…क्योकि वो कहते है ना निखिल,’ आत्मा का मिलन तभी होता है जहाँ सच की परछाई हो…और प्यार भी तो दो आत्मा का मिलन ही है..’
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